
क्या मौत को छू कर आने वाले लोगों के तजुर्बे किसी ऐसे मन का आखिरी ख्वाब होते है, जो दम तोड़ने वाला है या फिर वो इस बात का संकेत है, कि मौत के बाद भी कुछ और है, इस सत्य को जानने के लिए एक बहुत बड़ी वैज्ञानिक खोज की जरूरत है, जिससे इंसानी आत्मा का पता लगाया जा सके |
( Part-2 )
क्या मौजूदा जीवन के अलावा भी कोई और जीवन है |
अलेक्जेंडर को जो अनुभव हुआ ठीक ऐसे ही तरह का अनुभव पहले भी ऐसे कई लाखो करोड़ों लोगों को हो चुका है, जो मौत के मुह से बाहर निकल कर आए है, लगभग वो सभी लोग कुछ इस तरह की बातों का दावा करते है, जिनके आधार पर साइंस अभी तक ये साबित नहीं कर पाया है, कि हमारे मौजूदा जीवन के परे भी कोई और जीवन है, न्यूरो साइंटिफिक एंगल से ये बात किसी को समझाना मेरे लिए बहुत ही मुस्किल था, क्योंकि मेरा साइंटिफिक दिमाग समझ नहीं पा रहा था कि आखिर ये कैसे मुमकिन है, लेकिन उसके बावजूद वो सब मुझे एकदम साफ- साफ याद था |
अलेक्जेंडर का तजुर्बा इतना जबरदस्त कैसे था |
मेने न्यूरो फिजियोलॉजी (Neuro Physiology) और न्यूरो एनाथमी (Neuro Anathema) से रिलेटेड कयी मॉडल तैयार किए लेकिन दिक्कत ये है, कि उनमे से किसी से भी मुझे ये जान पाने में मदद नहीं मिली, कि इस अभ्यास के बाद मैं जिन इतनी साफ यादो के साथ लौटा था, वो मेरे मन मे आखिर कहां से आयी और इसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुचा की मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था, उसका कोई भी क्लियर न्यूरो फिजियोलॉजीक अनुभव नहीं था, अलेक्जेंडर का तजुर्बा यकीनन इतना जबरदस्त था कि उसने उनकी जिंदगी बदल कर रख थी, लेकिन किसी भी सूरत में उसे बेजोड़ नहीं कहा जा सकता है |
क्या है मौत के मुंह से निकलकर जिंदा आने वाले लोगों की सचाई |
ब्रूस ग्रेसन (Bruce Grayson) यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया स्कुल आफ़ मेडिसिन (University of Virginia School of Medicine) में साइकिएट्रिस्ट है, उन्होंने मौत के मुह से निकलकर आने वाले लोगों के लगभग 1000 से ज्यादा केसेस की अध्यन की है, मौत की चौखट से जिंदा लौट कर आने वाले ज्यादातर लोगों का अनुभव लगभग एक जैसा होता है, उन्हें बेहद शांति और सुकून का एहसास होता है उन्हें लगता है कि उन्होंने शरीर छोड़ दिया है उन्हें कोई तेज चमकती हुयी रोशनी नजर आती है, जो बेहद गर्म जोशी और बेपनाह मोहब्बत के साथ उन्हें अपनी ओर खींचती है, कुछ लोगों को कभी- कभी कोई फरिश्ता या देवता नजर आता है, जिसे वो गॉड या क्राइस्ट भी कहते है या उसे ना पहचानकर उसे कोई महा शक्ति भी कहते है |
कयी साइंटिस्ट इन दावों को नहीं मानते है उनका कहना है कि ये दावे लोगों के दिमागी फितूर के अलावा और कुछ भी नहीं है, और ऐसा ज्यादातर तब होता है जब भयंकर शारीरिक दबाव की स्थिति मे हमारा दिमाग के नर्व सेल्स को ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है |
किसी इंसान के ऊपर G फोर्स डालने के बाद क्या होता है |
70 की दशक में अमेरीका के एयर फोर्स अनजाने मे इस बात से संबंधित कुछ एक्सपेरिमेंट कर बैठी, साइंटिस्ट ने पायलट को सेन्ट्रीफ्युज यानी एक तरह की उप केंद्रीय मशीन मे घुमाकर उनके शरीर पर जबरदस्त G फोर्स डाला, इससे उनके शरीर का पूरा खून खींच कर उनके पैरों तक पहुच गया, और उनके दिमाग में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई, इस वजह से वो सब बेहोश हो गए, होश मे आने पर कुछ पायलट ने बताया की उन्हें एक चमकदार रोशनी नजर आयी थी, और कुछ का कहना था कि वो अपने शरीर से निकल कर बाहर आ गए थे, और ऊपर से अपने शरीर को देख रहे थे |
क्या है फिजियोलॉजी और इसका इंसानो पर क्या अनुभव है |
ये सभी अनुभव उन लोगों के अनुभवों से काफी मिलते जुलते थे, जो मौत के बेहद करीब पहुच कर लौट आए थे, लेकिन सिर्फ एक बड़ा फर्क़ था जिस वक़्त ऑक्सीजन की कमी से वो अपने होश खो रहे थे, उस वक़्त कुछ हद तक उनके वही लक्षण थे जो मौत के दहलीज पर खड़े किसी इंसान के होते है, लेकिन अपने उस अनुभव के दौरान उनमे से किसी के भी अपने किसी मरे हुए रिस्तेदार फरिश्ते या दिव्य शक्ति से मुलाकात नहीं हुए, इन सब फिजियोलॉजी अनुभव के साथ दिक्कत ये है कि जिस वक़्त हमारा दिमाग काम्प्लेक्स थिंकिंग यानी पेचीदा सोच विचार के लायक नहीं होता उस दौरान होने वाले परसेप्सन और पेचीदा यादो के बनने की वजह वो नहीं बता सकता है |
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