
कहा जाता है कि एक बार दुर्वासा ऋषि देवताओं से मिलने आए और वहां उनकी मुलाकात देवराज इंद्र से हुयी उन्हें देखकर दुर्वासा ऋषि बहुत खुश हुए और अपने गले से फ़ूलों की माला निकालकर उन्हें पहना दिए लेकिन अहंकार में चूर देवराज इंद्र ने वो माला अपने गले से निकालकर अपने एरावत हाथी के सूंड में पहना दिए इसके बाद जो कुछ हुआ वो किसी बुरे सपने से कम नहीं था और यही से निव पडी हिन्दुओं के सबसे बड़े पर्व Mahakumbh महाकुंभ की
महाकुंभ दुनिया भर मे ऐसा एकलौता पर्व है जहा एक बार में लाखो लोग एक साथ इकट्ठा होते है कहा जाता है कि महाकुंभ का दृश्य अंतरिक्ष से दिखाई देता है, और तो और इसे यूनेस्को (UNESSO) ने भी वर्ल्ड हेरिटेज साईट करार दिया है

लेकिन ये( Mahakumbh) महाकुंभ है क्या, और इसका मतलब क्या है ?
दरअसल Kumbh कुम्भ शब्द का मतलब घड़ा,और इसे धार्मिक नजरिए से देखे तो Mahakumbh महाकुंभ का मतलब अमृत से भरा विशाल घड़ा दोस्तों इस पर्व को धूम धाम से मनाने के लिए भारत के चार पवित्र जगह –
(1) प्रयाग राज
(2) हरिद्वार
(3) उज्जैन
(4) नासिक
इन चार जगहों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है और इस बार ये मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में मनाया जा रहा है जिसमें हिन्दू धर्म के लोग आस्था रखते है और देश विदेश से लाखो श्रद्धालु इस विशाल Mahakumbh महाकुंभ में आते है इसके पीछे एक मान्यता भी है कि यहां स्नान करने से लोगों के सारे पाप नष्ट हो जाते है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है लेकिन यहा पर एक सवाल उठता है कि –

आखिर ये Mahakumbh 2025 महाकुंभ का मेला 144 साल में ही क्यूँ लगता है?और इसकी शुरुआत कैसे हुयी ?
तो इसके पीछे एक दिलचस्प और पौराणिक कहानि बताई जाती है जैसा हमने सबसे पहले शुरुआत में बताया कि इक बार दुर्वासा ऋषि जब देवताओं से मिलने पहुचे तो उनकी मुलाकात देवराज इंद्र से हुयी जो अपने दिव्य हाथि ऐरावत पर बैठे थे इंद्र को देख दुर्वासा ऋषि काफी खुश हुए और अपने गले से फ़ूलों की एक माला निकाल कर उनको पहना दिए लेकिन अहंकार में डूबे देवराज इंद्र ने वो माला निकालकर आपमे ऐरावत हाथी के सूंड में डाल दिए अहंकार में चूर देवराज इंद्र को ये अंदाजा भी नहीं था कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी ऐेसे मे अब ये गलती उन्हें और पूरे देवताओं को काफी ज्यादा भारी पड़ने वाली थी क्युकी देवराज इंद्र का हाथि ऐरावत था तो एक जानवर ही उसे कहा पता था कि ऋषि दुर्वासा कौन है और इस माला की क्या अहमियत है उसने ये माला अपनी सूंड से पकडकर नीचे फेंक दी और यही नहीं उसे पैरों से कुचलने भी लगा ऋषि दुर्वासा वही खड़े थे और ये सब कुछ उनके नजरो के सामने हो रहा था जिसे देखकर उन्हें काफी ज्यादा अपमानित महसूस हो रहा था और उनकी आँखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी और उन्होंने देवराज इंद्र को श्राप देते हुए कहा इंद्र तुम देवताओं को बहुत अहंकार हो गया है जा मैं तुझे श्राप देता हू.

कि जिसके अहंकार में चूर होकर तूने मेरा तिरस्कार किया, तेरी सारी वो सम्पत्ति, ऐश्वर्य और साम्राज्य, तुझसे छिन जाएगा ||
ऋषि दुर्वासा (Durwasha Rishi) का ये श्राप सुनकर देवराज इंद्र काफी भयभीत हो गए और उन्होंने दुर्वासा से माफ कर देने की गुहार लगायी लेकिन दुर्वासा का ये श्राप बदला ही नहीं जा सकता था फिर क्या था ऋषि दुर्वासा के इस श्राप का असर जल्द ही देखने को मिलने लगा श्राप की वजह से सभी देवता काफी कमजोर होते चले गए और इसका फायदा उठाया राक्षसों ने और उन्होंने ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और स्वर्ग तथा देवलोक पर कब्जा भी कर लिया अब अपनी लगातार खराब होती हालत देख सभी देवताओं के बीच हड़कंप मच गया ,अपना सब कुछ गवां देने के डर से देवराज इंद्र सहित सभी देवता भागे भागे ब्रम्हा जी के पास पहुचे और सारी कहानी उन्हें बतायी लेकिन ब्रम्हा जी को भी इसका कोई समाधान नजर नहीं आया तब वो सभी देवताओं को साथ लेकर क्षीर सागर में आराम कर रहे भगवान विष्णु जी के पास पहुचे जहा उन्होंने विष्णु जी को ऋषि दुर्वासा का दिया श्राप और राक्षसों के आक्रमण की जानकारी दी उनकी बात सुनने के बाद विष्णु जी ने एक पल सोचा और फिर एक उपाय भी बताया उन्होंने सब देवताओं से कहा आप सब लोग राक्षसों की मदद ले और इस क्षीर सागर का मंथन करे…………Continue in Next Post.