
मृत्यु के बाद ? क्या हमारा वज़ूद खत्म हो जाता है | या फिर हम कोई और रूप मे जिंदा रहते है | आखिर वह क्या चीज़ है जो हमें होशो हवाश से भरपूर एक नायाब इन्सान बनाती है, हमारे वज़ूद से जुड़ा यह एक बहुत बड़ा रहस्य है यह एक ऐसी गुत्थी है जिसे सुलझाने मे साइंस आज तक नाकामयाब रही हैं, लेकिन अब कुछ बायोलॉजीस्ट, फिजिशिस्ट और फिलास्फर इस बड़े सवाल के जवाब के बेहद करीब पहुच चुकें है कि क्या मृत्यु (death) के बाद भी जीवन है |
( Part-1 )
क्या होता है, मृत्यु के बाद, क्या हम किसी और रूप मे जिंदा रहते है |
क्या (death) मृत्यु के बाद हमारा अंत है, सिर्फ एक सन्नाटा अंधेरा खालीपन या फिर हमारे अंदर ही कोई ऐसी दिव्य चमक मौजूद है, जो हमारा शरीर बेज़ान हो जाने के बाद भी ज़िन्दा रहती है, फिलास्फर और साइंटिस्ट हज़ारों सालो से इस सवाल से जुझते आ रहे है, ये बहुत बड़ा रहस्य है जिसका सामना आज नहीं तो कल हमे करना ही पड़ेगा |
एक सुबह जब मैं 6 साल का था पिताजी नींद से नहीं जागे, न उस दिन न उसके बाद कभी ये मृत्यु (death) के साथ मेरा पहला तजुर्बा था मेरी समझ मे नही आया कि ऐसा कैसा हो सकता है कि कल तक तो वो थे लेकिन आज वो नहीं है क्या वो हमेशा के लिए वो जा चुकी थी अब भी वो किसी रूप मे जिंदा थी, हिन्दू, क्रिस्चियन और मुस्लिम ये मानते है कि अच्छे लोग स्वर्ग मे जाते है और बुरे लोग नर्क मे |
कुछ धर्मों के मुताबिक मरने के बाद इंसान एक बेहतरीन दुनिया मे प्रवेश कर जाता है या फिर इसी दुनिया मे दोबारा जन्म लेता है लेकिन इन सब विश्वास में एक ही चीज़ कामन है और वो ये कि हमारा शरीर सिर्फ आत्मा का एक चोला है और आत्मा अमर |
कई लोग मन ही मन इस बात पर यकीन करते है लेकिन क्या इस बात को वैज्ञानिक तौर पर खारिज या साबित करने का कोई तरीका है | ऐबन अलेक्जेंडर पिछले 15 सालो से हार्वर्ड स्कुल मे न्यूरो सर्जरी करते और पढाते आ रहे है, लेकिन 2008 मे उनके करियर मे अचानक एक ऐसा अजीब मोड़ आया जिससे मृत्यु के बाद का जिवन की संभावना का उन्हें गहरायी से एहसास हुआ वो एक बहुत ही रेयर बीमारी बैक्टीरियल माय्रिंजाइटिस के शिकार हो गए और गहरे कोमा में चले गए |
मेरे ख्याल से अगर आप इंसानी मृत्यु (death) बेहद करीबी प्रयोगात्मक माॅडल देखना चाहते है तो माय्रिंजाइटिस से बढ़िया कोई और माॅडल हो ही नहीं सकता, क्योंकि ये बीमारी आपके दिमाग की पूरी बाहरी परत पर जबरदस्त हमला बोलती है, मेरे दिमाग की पूरी बाहरी परत पस से ढ़की हुयी है, ये सारा बैक्टीरिया सारा ग्लूकोज़ चट कर चुके है, अब मेरे ब्रेन सेल्स बचे हुए है, जिनका सफाया होना बाकी है, इसलिए मेरा पूरा नियोकोटक्स यानी दिमाग का वो हिस्सा जो हमे इंसान बनाता है पूरी तरह से बंद हो चुका है |
7 दिन के एक तरह के दिमागी मौत के बाद आखिर एलेक्जेंडर कोमा से बाहर आ गया, ये एक चमत्कार ही था कि महीने भर मे वो फिर से पूरी तरह से ठीक हो गया, लेकिन जब वो कोमा मे थे तब उनके साथ कुछ हुआ |
मुझे याद है शुरू – शुरू में जब मैं गहरे कोमा मे था, तब मुझे कैसा महसूस हो रहा था उसे मैं कभी-कभी दुनिया का अर्थ वर्म आई विव (Earth Worm Eye View ) भी कहता हूं | कुछ भी साफ नहीं था धुँधला सा ब्राउन रेड ब्लैक सा मुझे अच्छी तरह याद है, मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरे सर पर जड़े उग आयी हो और मैं बहुत लंबे समय से वहां हूं, मुझे कुछ याद नहीं था ना अपनी जिंदगी ना कोई शब्द मेरी आवाज़ जा चुकी थी |
ICU कमरे मे मेरे इर्ध गिर्ध क्या हो रहा था मुझे कुछ भी याद नहीं और फिर इन सभी बीच अचानक मुझे धीमा धीमा संगीत आकार लेता नजर आया, धीरे-धीरे वो संगीत फैलता गया और उसके साथ ही वो मनहूस धुँधलापन वो अंधेरा छटता चला गया, अचानक मैंने अपने आप को एक बेहद खूबसूरत वादी में दाखिल होते हुए पाया मुझे अपने शरीर का कोई एहसास नहीं हो रहा था, मुझे अपने हाथ पैर बिल्कुल भी एहसास नहीं हो रहे थे |
मुझे इस बात का एहसास जरूर था कि मैं किसी तितली के पंख पर मौजूद कोई छोटा सा कण हूं वो बहुत ही खूबसूरत सी तितली थी और वहां वैसी ही लाखो तितलियां हमारे इर्द-गिर्द मंडरा रही थी और वो झुंड में बहुत ही सुंदर आकार बनाकर उड़ान भर रही थी, और फिर हम सब ये ब्रह्मांड छोड़कर उस लोक में दाखिल हुए जिसे अब मैंने कोर का नाम दिया है वो जगह इतनी बड़ी थी और उसका कोई ओर छोर नहीं था |
हालांकि वहां थोड़ा अंधेरा था लेकिन इसके बावजूद मुझे ब्रह्मांड से बाहर उस जगह पर पूरी तरह से उस दिव्य शक्ति का सुखद एहसास हो रहा था जिसे हम ईश्वर कहते है, सच कहूँ तो मुझे सारे ब्रह्मांड अपनी आँखों के सामने नजर आ रहे थे और ये बात बिल्कुल साफ थी कि प्यार उन सब ब्रह्मांड का एक बहुत बड़ा हिस्सा था ……………….. अगला भाग.
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