
क्या पुनर्जन्म होता है, और अगर होता है तो एक प्राणी के लिए एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने का आधार क्या है, वो क्या है जो किसी व्यक्ति को एक जन्म से दूसरे जन्म में ले जाता है |
अगर आप इस व्यवस्था को समझना चाहते है तो आपको आप जो है उसके मैकेनिज्म की थोड़ी समझ होनी चाहिए, मैं उस मैकेनिज्म की बात कर रहा हूं जिससे एक मनुष्य का निर्माण होता है देखिये जब आप कहते है कि मैं एक मनुष्य हूं तो सबसे बाहरी रूपरेखा भौतिक शरीर की होती है, योग में हम हर चीज़ को शरीर की तरह देखते है क्युकी यह आपके लिए समझने में आसान है |

हम शरीर को पांच आयामों या पांच परतो के रूप मे देखते है |
(1) भौतिक शरीर को अन्नमय कोष कहा जाता है,अन्नमय कोष का मतलब है ये भोजन शरीर है |
(2)अगले को मनोमय कोष कहते है जिसका मतलब है कि ये मानसिक शरीर है |
(3) इसे प्राणमय कोष कहते है जिसका मतलब ऊर्जा शरीर है |
ये तीनों आयाम भौतिक है जिनका भौतिक अस्तित्व है ,भौतिक शरीर बहुत स्थूल है, मानसिक शरीर थोड़ा सूक्ष्म है, ऊर्जा शरीर और भी ज्यादा सूक्ष्म है लेकिन ये तीनों भौतिक है |
जैसे – लाइट बल्ब भौतिक है देख सकते है, इसे जलाने वाली बिजली भी भौतिक है, इसे जोड़ने वाला तार भी भौतिक है, तार में बहने वाले इलेक्ट्रान भी भौतिक है |
तो इसी तरह भौतिक शरीर, मानसिक शरीर और ऊर्जा शरीर सभी जीवन के भौतिक आयाम है, इन तीनों आयामों पर कर्म की छाप होती है, शरीर पर कर्म की छाप है, मन पर कर्म की छाप है और ऊर्जा पर कर्म की छाप है |
कर्म की छाप या कर्म का ढांचा ही इन्हें एकसाथ रखता है, कर्म वो सीमेंट है जो आपको भौतिक शरीर के साथ जोड़कर रखता है, कर्म बंधन है, लेकिन साथ ही सिर्फ कर्म के कारण ही आप अपने शरीर में कायम रह सकते है, और यहां हो सकते है |

यही पर आध्यात्मिकता मुस्किल लगती है क्युकी अगर आप इसे हटाने की कोशिश करते है तो ये नहीं होता, अगर आप इसे जोड़ने की कोशिश करते है, तो ये नहीं होता, आपको सिर्फ वहां होना होता है, अगर आप बस होते है तो ये एक पल की बात है |
(4) इसे विज्ञानमय कोष कहते है, विज्ञानमय कोष अभौतिक है लेकिन भौतिक से संबंध रखता है ये एक बीच की अवस्था की तरह है |
(5) इसे आनंदमय कोष कहते है, आनंदमय कोष पूरी तरह से अभौतिक है |
विज्ञानमय कोष और आनंदमय कोष का मतलब है कि ये आनंद शरीर है, अंदर एक आनंद शरीर है जो 100% अभौतिक है, इसका अपना कोई रूप नहीं है |
अगर ऊर्जा शरीर, मानसिक शरीर और भौतिक शरीर सही आकार मे है केवल तभी ये आनंद शरीर को थामे रख सकते है, अगर इन चीजों को निकाल दिया जाए तो आनंद शरीर केवल ब्रह्मांड का एक हिस्सा बन जाएगा |

जिसे आप आत्मा कहते है वो असल में एक कल्पना है इस मायने में, की लोग अभौतिक की कुछ सीमाओं का वर्णन आत्मा की तरह कर रहे है, लेकिन आत्मा के लिए ढांचा अभी भी आपका कर्म ही है, अगर कर्म के ढांचे को पूरी तरह से ढाह दिया जाए तो कोई आत्मा नहीं बचती, हर चीज़ दूसरी हर चीज़ में विलीन हो जाती है जिसे महा समाधि या महा परिनिर्वाण कहते है वो बस यही है कि आप धीरे-धीरे समझ जाते है कि चाभी कहा है और कर्म के ढांचे को गिरा देते है ताकि आप सही मायने में खत्म हो जाए |
जब कोई व्यक्ति मरता है तो हम कहते ही की ये व्यक्ति नहीं रहा, ये सच नहीं है, वो इंसान अब वैसा नहीं है जैसा आप उसे जानते थे, लेकिन वो अब भी मौजूद है अगर आप कर्म के ढांचे को 100% नष्ट कर दे, अब आप अस्तित्व में विलीन हो जाएंगे, इसी को मुक्ति या महा समाधि हिन्दू परंपरा में इसे मुक्ति कहा गया है, योग की परंपरा में इसे महासमाधि कहा गया है, बौद्ध जीवन शैली में इसे महा परिनिर्वाण कहा गया है |
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